बाल सभा ४-१४ वर्ष की आयु के बच्चों में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संचार करती है, उनमे अनुशासन को बढ़ावा देती है तथा उन्हें सुसंस्कृत और जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने संस्कारों या मूल्यों को अनोखा महत्व दिया है। ‘संस्कार’ शब्द का अर्थ ही ‘परिशोधन करना’ है, जो एक साधारण अस्तित्व से एक उन्नत व्यक्ती तथा समाज बनने की प्रक्रिया को दर्शाता है। जैसे सोने को अशुद्धियों से शुद्ध किया जाता है, संस्कार एक परिशोधन प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को अशुद्धियों और विकृतियों से मुक्त करना है, जिससे उनके चरित्र और व्यक्तित्व का परिशोधन हो सके।
यह कहा जाता है कि बच्चों में प्रारंभिक आयु के दौरान रुझे संस्कार उनके व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संस्कार शरीर, मन और बुद्धि को शुद्ध करते हैं, जो व्यक्तियों को समाज में अपनी भूमिकाओं को आदर्श रूप से पूरा करने के लिए सशक्त बनाते हैं।
विश्वमांगल्य बाल सभा ४ से १४ वर्ष की आयु के बच्चों को एकत्रित करने और उन्हें शारीरिक तथा मानसिक परिपूर्णता की दिशा में मार्गदर्शन करने का प्रयास करती है।
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