Vishwamangalya Sabha

जल, जमीन, जंगल और जानवर की रक्षा करने वाले लोगों को ‘जनजाति’ कहा जाता है! “देश हमें सबकुछ देता है, हम भी तो कुछ देना सीखें” इस उक्ति से प्रेरित होकर विश्वमांगल्य सभा में मातृत्वधर्म के जागरण के माध्यम से राष्ट्रधर्म के लिए किस प्रकार योगदान किया जा सकता है, इस विषय के लिए ‘जनजाति कल्याण विभाग’ की स्थापना की गई है।

भारत में जनजातियों की संख्या १० करोड़ से अधिक है, जिसमें आधी संख्या महिलाओं की है। इन महिलाओं के विकास को ध्यान में रखते हुए, जनजाति की संस्कृति, परंपरा, संस्कार और रीति-रिवाज को आगे ले जाने के लिए इस विभाग की स्थापना की गई है।

जंगल की रक्षा, विरासत का संरक्षण:

जनजातीय क्षेत्रों में यह गर्व की बात है कि वहाँ मातृप्रधान संस्कृति देखने को मिलती है। उनके जीवन-यापन में यह देखा गया है कि परिवार में संस्कृति, समाजजीवन, पारिवारिक जीवन और संपूर्ण जीवन निर्वहन में ‘मां’ की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। भारत के जनजातीय समाज का इस देश और हिंदू धर्म के साथ वेद और पुराण काल से अटूट रिश्ता रहा है। कई ऋषि-मुनि अपनी पत्नियों के साथ आश्रमों में रहकर निकटतम परिसर का संरक्षण, संवर्धन और विकास करते थे। कई जनजातीय स्त्रियों द्वारा वेदोक्त और पुराणोक्त उपदेश भी दिए जाते हैं। इससे हमें स्त्रियों की श्रेष्ठ विचारधारा, जीवनपद्धति और उनकी संस्कृति का दर्शन होता है।
दृष्टि
विभाग का उद्देश्य 'माताओं' के निर्माण और विकास को बढ़ावा देना है जो ईश्वरीय, देश, धर्म, वंश, परिवार, संस्कृति, मूल्यों और सशक्तिकरण के दृष्टिकोण के माध्यम से पोषण और सशक्तिकरण करती हैं।
लक्ष्य
विभाग का लक्ष्य आदिवासी महिलाओं, लड़कियों या माताओं को उनके सांस्कृतिक और पारिवारिक तत्वों से छेड़छाड़ किए बिना उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं में विकसित करना है। उनके त्योहारों, प्रतीकों, पारिवारिक दर्शन और मान्यताओं को सनातन धर्म के मूल तत्वों से जोड़कर संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।

यात्रा और संपर्क:

पूर्णतः जनजातीय हैं। इस क्षेत्र के ३३० गांवों में से फिलहाल १०० गांव संपर्कित, ५० गांव विकसनशील और ५ गांव विकसित हैं। उत्सव के दौरान और बाकी समय में भी छोटे-छोटे गांवों में विश्वमांगल्य सभा का संपर्क अभियान जारी रहता है।